शुक्रवार, 25 सितंबर 2015

छोटा सा गाँव मेरा

छोटा सा गाँव मेरा
पुरा बिग् बाजार था,,

एक नाई, एक मोची,
एक काला लुहार था....
छोटे छोटे घर थे,
हर आदमी बङा दिलदार
था,
छोटा सा गाँव मेरा
पुरा बिग् बाजार था..।।

कही भी रोटी खा लेतै,
हर घर मे भोजऩ तैयार
था,
बाड़ी की सब्जी मजे से खाते थे,,
जिसके आगे शाही पनीर बेकार था..
छोटा सा गाँव मेरा
पुरा बिग् बाजार था।।।

दो मिऩट की मैगी ना, झटपट दलिया तैयार था,,
नीम की निम्बोली और शहतुत सदाबहार था...
अपना घड़ा कस कै बजा लेते,
समारू पुरा संगीतकार था,,
छोटा सा गाँव मेरा
पुरा बिग् बाजार था।।।

मुल्तानी माटी से तालाब में नहा लेते, साबुन और स्विमिंग पूल बेकार था,,
और फिर कबड्डी खेल लेते,
हमे कहाँ क्रिकेट का खुमार था,,
छोटा सा गाँव मेरा
पुरा बिग् बाजार था।।।

दादी की कहानी सुन लेते,
कहाँ टेलीविज़न और अखबार था,,,
भाई - भाई को देख के खुश था,
सब मे बहुत प्यार था,,,
छोटा सा गाँव मेरा
पुरा बिग् बाजार था।।।

वो प्यार, वो संस्कृति
मैं अब कहाँ से लाऊं,
ये सोच सोच कर
मैं बहुत दुख पाऊं।
जो वो समय फिर आ जा्य, तो बहुत मजा आ जाय,,,
मैं अपनी असली जिन्दगी जी पाऊं,
और मैं इस धरती को सौ-सौ शीश झुकाऊं।

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