रविवार, 18 अक्तूबर 2015

हसीन इत्तेफाक़

क्या हसीन इत्तेफाक़ था तेरी गली में आने का....!!

किसी काम से आये थे, !! किसी काम के ना रहे....!!

शनिवार, 17 अक्तूबर 2015

नफरतों का असर देखो,

मालूम नही किसने लिखा है, पर क्या खूब लिखा है..

नफरतों का असर देखो,
जानवरों का बटंवारा हो गया,
गाय हिन्दू हो गयी ;
और बकरा मुसलमान हो गया.

मंदिरो मे हिंदू देखे, 
मस्जिदो में मुसलमान,
शाम को जब मयखाने गया ;
तब जाकर दिखे इन्सान.
ये पेड़ ये पत्ते ये शाखें भी परेशान हो जाएं
अगर परिंदे भी हिन्दू और मुस्लमान हो जाएं

सूखे मेवे भी ये देख कर हैरान हो गए
न जाने कब नारियल हिन्दू और 
खजूर मुसलमान हो गए..

न मस्जिद को जानते हैं , न शिवालों को जानते हैं
जो भूखे पेट होते हैं, वो सिर्फ निवालों को जानते हैं.

अंदाज ज़माने को खलता है.
की मेरा चिराग हवा के खिलाफ क्यों जलता है......

मैं अमन पसंद हूँ , मेरे शहर में दंगा रहने दो...
लाल और हरे में मत बांटो, मेरी छत पर तिरंगा रहने दो....

जिस तरह से धर्म मजहब के नाम पे हम रंगों को भी बांटते जा रहे है

कि हरा मुस्लिम का है

और लाल हिन्दू का रंग है

तो वो दिन दूर नही

जब सारी की सारी हरी सब्ज़ियाँ मुस्लिमों की हों जाएँगी

और

हिंदुओं के हिस्से बस टमाटर,गाजर और चुकुन्दर ही आएंगे!

अब ये समझ नहीं आ रहा कि ये तरबूज किसके हिस्से में आएगा ?

ये तो बेचारा ऊपर से मुस्लमान और अंदर से हिंदू ही रह जायेगा...

शुक्रवार, 16 अक्तूबर 2015

बड़ी मुश्किल से राजी हुए है वो

मेरी  ना सही तुम्हारी  ही  सही
तमन्ना पूरी  होनी चाहिये ।

“बड़ी मुश्किल से राजी हुए है वो साथ चलने को...,
खुदा करे कि मुझे सारी जिंदगी मंजिल न मिले..."

कुछ बातें ना छेड़ी जाएँ तो ही अच्छा है.....ये सिर्फ़ होकर गुज़र जाने के लिए होती हैं......!!!

लाएँगे तुझ सा कहाँ से हम;

अब सोचते हैं लाएँगे तुझ सा कहाँ से हम; उठने को उठ तो आए तेरे आस्ताँ से हम।

अभी मशरूफ हूँ काफी कभी फुर्सत में सोचूंगा; कि तुझको याद रखने में मैं क्या - क्या भूल जाता हूँ।

मत पूछो कि मै अल्फाज कहाँ से लाता हूँ, ये उसकी यादों का खजाना है, बस लुटाये जा रहा हूँ।

जब भी तेरी यादों को आसपास पाता हूँ; खुद को हद दर्ज़े तक उदास पाता हूँ; तुझे तो मिल गई खुशियाँ ज़माने भर की; मै अब भी दिल में वही प्यास पाता हूँ।

चुप चाप से रहते हो

चुप चाप से रहते हो आज कल क्या बात है
कोई बात दिल पर लगी या दिल ही किसी से लगा बैठे

मेरी एक बात मानो तो तुम रोज मेरा हाल मत पूछा करो...
हर बार मुझसे झूठ नही बोला जाता...!!!

यकीन करो आज इस कदर याद आ रहे हो तुम; जिस कदर तुम ने भुला रखा है मुझे

लम्हे बेचकर,

लम्हे बेचकर, पैसे तो आ गये ..
अब बताओ...
किस दुकान पे ख़ुशी मिलेगी...!!

इश्क मुकम्मल कब हुआ है जो आज होगा..

इतिहास गवाह है, किताबो मे भी अधुरा था, हकीकत मे भी अधुरा है..

शौक से बदल जाओ तुम मगर ये जहन मैं रखना की हम जाे बदल गये तो तुम करवटें बदलते रह जाआेगे.

जो लम्हा साथ हैं,,

जो लम्हा साथ हैं,,,
उसे जी भर के जी लेना..!
कम्बख्त ये जिंदगी. . .
भरोसे के काबिल नहीं होती.....

लम्हे बेचकर, पैसे तो आ गये ..
अब बताओ...
किस दुकान पे ख़ुशी मिलेगी...!!

इश्क मुकम्मल कब हुआ है जो आज होगा..
इतिहास गवाह है, किताबो मे भी अधुरा था, हकीकत मे भी अधुरा है..

शौक से बदल जाओ तुम मगर ये जहन मैं रखना की हम जाे बदल गये तो तुम करवटें बदलते रह जाआेगे.

अजब तमाशे है दुनिया में यारों, काैड़ीयाे में इज्जत और करोड़ों में कपड़े बिकते हैं.

इक ख़ूबसूरत शाम

तुम्हारे नाम की इक ख़ूबसूरत शाम हो जाये
हमारा दिल सवेरे का सुनहरा जाम हो जाये
चराग़ों की तरह आँखें जलें जब शाम हो जाये

इत्तेफ़ाक़ से यह हादसा हुआ है चाहत से मेरा वास्ता हुआ है दूर रह कर बड़ा बेताब था दिल पास आ कर भी हाल बुरा हुआ है।

जो लम्हा साथ हैं,,,
उसे जी भर के जी लेना..!
कम्बख्त ये जिंदगी. . .
भरोसे के काबिल नहीं होती.....

कोई शायर तो कोई फकीर

कोई शायर तो कोई फकीर बन जाये; आपको जो देखे वो खुद तस्वीर बन जाये; ना फूलों की ज़रूरत ना कलियों की; जहाँ आप पैर रख दो वहीं कश्मीर बन जाये।

सदियों से जागी आँखों को

सदियों से जागी आँखों को एक बार सुलाने आ जाओ; माना कि तुमको प्यार नहीं, नफ़रत ही जताने आ जाओ; जिस मोड़ पे हमको छोड़ गए हम बैठे अब तक सोच रहे; क्या भूल हुई क्यों जुदा हुए, बस यह समझाने आ जाओ।

इल्ज़ाम

मोहब्बत ने हम पर ये इल्ज़ाम लगाया हैं .. वफ़ा कर के बेबफा का नाम आया हैं …. राहें अलग नहीं थी हमारी फिर भी ….. हम ने अलग अलग मंज़िल को पाया हैं

गुरुवार, 15 अक्तूबर 2015

कामयाबी नही होती है

"सिर्फ आसमान छू लेना ही
कामयाबी
नही होती है !
असली कामयाबी तो वो है
कि आसमान
भी छू लो और पैर भी
जमीन पर हों..!!"
.
"जो हो गया उसे सोचा नही
करते,
जो मिल गया उसे खोया
नही करते,
हासिल उन्हें होती है
सफलता,
जो वक्त और हालात पर
रोया नहीं
करते !!"
.
"घड़ी की सुई अपने नियम
से चलती है ,
इसीलिए सब उसका
विश्वास करते हैं !
आप भी अपने नियम से
चलिये,
लोग आपका भी विश्वास
करेंगे...!!"
.
"रिश्तों की सिलाई" अगर
भावनाओं से
हुई है, "तो टूटना मुश्किल
है" !
और अगर स्वार्थ से हुई है , "तो टिकना
मुश्किल है" !!
.
"दीपक बोलता नहीं उसका
प्रकाश
परिचय देता है !
ठीक उसी प्रकार आप अपने
बारे में कुछ न
बोले ;
अच्छे कर्म करते रहे वही
आपका परिचय
देगे !!"
.
"बहुत खुशकिस्मत होते है
वे लोग जिन्हें
“समय” और
“समझ” एक साथ मिलती
है, क्योंकी
अक्सर “समय”
पर “समझ” नही आती और
जब “समझ”
आती है तो
“समय” हाथ से निकल जाता है…!!!"
सुप्रभात

मंगलवार, 13 अक्तूबर 2015

जीने के लिये भी वक़्त नहीं.... ....

" वक़्त नहीं "
हर ख़ुशी है लोंगों के दामन में,
पर एक हंसी के लिये वक़्त नहीं....
दिन रात दौड़ती दुनिया में,
"ज़िन्दगी" के लिये ही वक़्त नहीं......
सारे रिश्तों को तो हम मार चुके,
अब उन्हें दफ़नाने का भी वक़्त नहीं .....
सारे नाम मोबाइल में हैं ,
पर "दोस्ती" के लिये वक़्त नहीं .....
गैरों की क्या बात. करें ,
जब अपनों के लिये ही वक़्त नहीं......
आखों में है नींद. भरी ,
पर सोने का वक़्त नहीं......
"दिल" है ग़मो से भरा हुआ ,
पर रोने का भी वक़्त नहीं .
पैसों की दौड़ में ऐसे दौड़े, की,,
थकने का भी वक़्त नहीं ....
पराये एहसानों की क्या कद्र करें ,
जब अपने सपनों के लिये ही वक़्त नहीं.......
तू ही बता दे ऐ ज़िन्दगी ,
इस ज़िन्दगी का क्या होगा,
की हर पल मरने वालों को,,
जीने के लिये भी वक़्त नहीं.... ....

मुझें, मंजूर थे वक़्त के सब सितम,

मुझें, मंजूर थे
वक़्त के सब सितम, मगर...
तुमसे मिलकर, बिछड़ जाना..
ये सजा
ज़रा ज्यादा हो गयी..!

सागर का डर भी अब ढलने लगा


सागर का डर भी अब ढलने लगा है,लहरो को मेरा संभलना भी खलने लगा है
हर दिशा मे मेरे चर्चे है क्योंकि,एक दिया तूफ़ान से झगड़कर भी जलने लगा है,

रविवार, 11 अक्तूबर 2015

उठो लाल अब आँखे खोलो

मॉडर्न कविता...

उठो लाल अब आँखे खोलो
मोबाईल ऑन कर नेट टटोलो..
चलो देख लो वाट्सएप पहले
ज्ञान जोक्स पर रोले हंस ले।
फेसबुक की है दूसरी बारी
जहाँ दिखेगी दुनिया सारी
देखो किसने क्या है डाला
किसने कितना किया घोटाला
कौन आज दुनिया में आया
किसने किससे केक कटाया
ट्विटर की तो बात निराली
चार शब्द् में गाथा गा ली।
उठो तुम भी कुछ लिख लिख बोलो
उठो लाल अब आँखे खोलो
मोबाईल ऑन कर नेट टटोलो..!!

शनिवार, 10 अक्तूबर 2015

चूहे का सेहरा

चूहे का सेहरा सुहाना लगता
है
चुहिया का तो दिल दिवाना
लगता है
पल भर में ऐसे कुतरते हैं
कपडे
अब तो हर कपडा पुराना
लगता है........

सर , सुसु जाना हैं.

साधारण लोग: सर , सुसु जाना हैं.

गुलज़ार साहब-

मचलती हैं पेट में कुछ लहरें सी,
लगता हैं इन्हें किसी किनारे का इंतज़ार हैं.

गुरुवार, 8 अक्तूबर 2015

अजब पहेलियाँ हैं

अजब पहेलियाँ हैं मेरे हाथों की इन लकीरों में;
सफर तो लिखा है मगर मंज़िलों का निशान नहीं।

हाथ की लकीरों पर

हाथ की लकीरों पर वक़्त की खरोंचे थीं,

लबों पर मुसकुराहट भी ज़ख्म सरीखी थीं

आज 'उम्मीद' का मरहम लगाया है सब पर

ऐ ज़िन्दगी तू हमें अपनाने लगी है!

ऐ ज़िन्दगी तू हमें रास आने लगी है!

वक्त तू कितना भी सता ले

वक्त तू कितना भी सता ले मुझे लेकिन याद रख...
किसी मोड़ पर , तुझे भी बदलने पर मजबूर कर दूंगा

प्लम्बर

प्लम्बर कितना भी
एक्सपर्ट क्यूँ न हो...???
पर...
वो आँखों से बहता...
पानी बंद नहीं कर सकता..

सुखी रोटी

मगन था मै...
सब्ज़ी में नुक़्स निकालने मे...!!
और कोई खुदा से....
सुखी रोटी देने का शुक्र मना रहा था...!!
ज़रा सोचिए।।

मंगलवार, 6 अक्तूबर 2015

मैं भूला नहीं हूँ किसी को....

किसी रोज़ याद न कर पाऊँ तो
     खुदग़रज़ ना समझ लेना दोस्तों

दरअसल छोटी सी इस उम्र
      मैं परेशानियां बहुत हैं...!!

मैं भूला नहीं हूँ किसी को....
      मेरे बहुत कम दोस्त है ज़माने में ....

बस थोड़ी जिंदगी उलझी पड़ी है,
       दो वक़्त की रोटी कमाने में........

कोई हालात नहीं समझता

कोई हालात नहीं समझता, कोई जज़्बात नहीं समझता,
ये तो बस अपनी अपनी समझ की बात है...,
कोई कोरा कागज़ भी पढ़ लेता है तो कोई पूरी किताब नहीं समझता!

लौट आती है हर बार

लौट आती है हर बार इबादत मेरी खाली"!!

ना जाने कौनसी मंजिल पे खुदा रहता है"!

उनके हिस्से का गम

इलाही उनके हिस्से का भी गम मुझको अता कर दे,

कि उन मासूम आंखों में नमी देखी नहीं जाती..

हक

हक जो मिल जाता मुस्कुराने का,

अहसाँ हो -जाता फिर जमाने का

उनके हिस्से का गम

इलाही उनके हिस्से का भी गम मुझको अता कर दे,

कि उन मासूम आंखों में नमी देखी नहीं जाती..

कितना बेजान शहर

कितना बेजान शहर हुआ जाता है अब ये ।

यहाँ उदास चेहरों का हाल कोई नहीं पूछता ।।

मरने वाले का मज़हब पूछते हैं सब ।

यहाँ क़ातिल से सवाल कोई नहीं पूछता ।

शायरो की बस्ती से गुज़रे तो

आज शायरो की बस्ती से गुज़रे तो महसूस हुआ,,

दर्द की महफिले भी लजवाब होती है...

पसंद' है मुझे...

'पसंद' है मुझे.....'उन' लोगों से 'हारना'.....!!
जो मेरे 'हारने' की वजह से.....'पहली' बार 'जीते' हों.....!!!

हाल-ए-दिल सुना सकें

इतनी हिम्मत नहीं कि किसी को हाल-ए-दिल सुना सकें,
बस जिसके लिए उदास है वो महसूस कर ले तो क्या बात है

दिल से बाहर निकलने का रास्ता

वो मेरे दिल से बाहर निकलने का रास्ता न ढुंढ सके, दावा करते थे जो मेरी रग-रग से वाकीफ होने का !!

अंदाज ही कुछ ऐसा है

हमारा अंदाज ही कुछ ऐसा है।
कि जब हम बोलते है तो बरस जाते है।
और जब हम चुप रहते है।तो लोग तरस जाते है।

गौर से देखा था आईने में ...

आज गौर से देखा था आईने में ...
तो बहुत उदास पाया था खुद को ...
दुनियादारी में इस कदर थे उलझे हुए ...
की नज़रअंदाज़ कर बैठे थे हम खुद को ।

उसकी नफ़रत

मै खुश हू कि उसकी नफ़रत
का अकेला वारिस हूँ,

वरना मोहब्बत तो उसे कई लोगो से है.

कुछ खामोशी को था स्वाभिमान

कुछ खामोशी को था स्वाभिमान,
कुछ लफ्जों को अपना गुरुर,

दोनों का ये मौन
दूरियों की वज़ह बनता रहा.....

जो बदलते हैं

जो बदलते हैं साथ वक्त के वो रिश्ते नहीं

किश्ती हैं दरिया के अभी और कहीं कभी और कहीं !

तजुर्बा कहता है

तजुर्बा कहता है मोहब्बत से किनारा कर लूँ…
और दिल कहता हैं की ये तज़ुर्बा दोबारा कर लू|

apni Soorat to dikha dun...

Aaine ko Main apni Soorat to dikha dun...
Pr in Nazrin ko Meri nhin Tere Deedar ki Aadat hai....

राह ताकता है

वो आईना आज भी राह ताकता है तेरी,

जिसको देखकर कभी सुरत सवांरी थी तूने!!

हसरतों के बाजार में

हसरतों के बाजार में हुए बेआबरू कुछ इस तरह;
खुद की नीलामी में खुद ही खरीदार हुए,
आईने के सामने जब भी खड़े हुए
अपनी शक्ल को छोड़ सबके दीदार हुए

सोमवार, 5 अक्तूबर 2015

पीठ पर जो जख्म है

मेरे पीठ पर जो जख्म है वो अपनों की निशानी हैं,
वरना सीना तो आज भी दुश्मनो के इंतजार मे बैठा है…

हुनरमंद राही

अनजान सी राहों पर चलने का तजुर्बा नहीं था,
पर उस राह ने मुझे एक हुनरमंद राही बना दिया।

शनिवार, 3 अक्तूबर 2015

क्यू जा रही हो तुम


'मयूरी सी भरी पूरी
सुनहरी लग रही हो तुम
कोई शिल्पी तराशे वो
परी सी फब रही हो तुम ।
तुम्हारे रूप का जादू ये
   सिर पर चढ़ गया मेरे
  मुझे तन्हा अकेला छोड
   कर क्यू जा रही हो तुम ।।

शुक्रवार, 2 अक्तूबर 2015

मयखाना

मयखाने में बैठकर कौन कितनी पी गया,
ये तो मयखाना ही जाने,

मगर मयखाना कितने घरों को पी गया,
ये खुद मयखाना भी ना जाने।

दो मसले, जिंदगीभर ना हल हुए!

प्यास लगी थी गजब की...मगर पानी मे जहर था...
पीते तो मर जाते और ना पीते तो भी मर जाते...
बस यही दो मसले, जिंदगीभर ना हल हुए!!!
ना नींद पूरी हुई, ना ख्वाब मुकम्मल हुए!!!
वक़्त ने कहा.....काश थोड़ा और सब्र होता!!!
सब्र ने कहा....काश थोड़ा और वक़्त होता!!!
सुबह सुबह उठना पड़ता है कमाने के लिए साहेब...।। आराम कमाने निकलता हूँ आराम छोड़कर।।
"हुनर" सड़कों पर तमाशा करता है और "किस्मत" महलों में राज करती है!!
"शिकायते तो बहुत है तुझसे ऐ जिन्दगी,
पर चुप इसलिये हु कि, जो दिया तूने,
वो भी बहुतो को नसीब नहीं होता"...

गुरुवार, 1 अक्तूबर 2015

Dost banaoge kisi

Dost banaoge kisi ko to wo jindgi bhar sath nibhayega
Aur agar usi se pyar kar baithe to
wo beech raah m aapko chhod  jayega

तूं काली ना होती तो

एक बार इंसान ने कोयल से कहा
         "तूं काली ना होती तो
           कितनी अच्छी होती"
              सागर से कहा:-
     "तेरा पानी खारा ना होता तो
           कितना अच्छा होता"
              गुलाब से कहा:-
        "तुझमें काँटे ना होते तो
           कितना अच्छा होता"
        तब तीनों एक साथ बोले:-
         "हे इंसान अगर तुझमें
  दुसरो की कमियाँ देखने की आदत
   ना होती तो तूं कितना अच्छा होता....
    

Dost hai mera bahaaron jaisa,

Dost hai mera bahaaron jaisa,
Dil hai uska dildaaron jaisa.

Bohat dost nahi rakhte hum magar,
Mera ek hi dost hai hazaaron jaisa.

Khushiyoon ka sansar leke aayenge,
Patjhar men bhi bahaar ley ke aayenge.

Jab bhi pukaaroge pyaar se humein aey DOST,
Maut se saansein udhaar leke aayenge.

जिन्दगी की दॊड मे


जिन्दगी की दॊड में
मुझे गिरा कर भागने वाले
मुझसे जीत का एक पल तो
छीन सकते हैं
लेकिन
जीत का हॊसला नहीं।
डर मुझे भी लगा
फांसला देख कर,
पर मैं बढ़ता गया
रास्ता देख कर,
खुद ब खुद
मेरे नज़दीक आती गई
मेरी मंज़िल
मेरा हौंसला देख कर.!
सुप्रभात

बुधवार, 30 सितंबर 2015

सहर ए नवा का अब के कुछ यूं असर होगा

सहर ए नवा का अब के कुछ यूं असर होगा
रोशनी की तलाश में यह समूचा शहर होगा

इंशा अल्लाह  वो दौर भी यकीनन आयेगा
हर शीशे के हाथ में एक दिन पत्थर होगा

ज़माने को  मालुम है तेरेे इंसाफ का आलम
हर इक इल्जाम किसी बेगुनाह के सर होगा

चरागों को ही हासिल है यह खुदाई खिदमत
कि बस्तियां जलाने से न रोशन कोई घर होगा

मत पूछ कि कहाँ से चला था कहाँ आया हूँ
मिलेगी जहाँ मंजिल  शुरू वहीं से सफर होगा 

कितने बेबस हैं

हम भी फूलों की तरह कितने बेबस हैं , कभी किस्मत से टूट जाते हैं , कभी लोग तोड़ जाते हैं

तरसते नन्हे हाथो को देखा है?

बड़ी ही गहरी बात लिख दी है
किसी शक्शियत नें ...

बेजुबान पत्थर पे लदे है करोडो के गहने मंदिरो में ,
उसी देहलीज पे एक रूपये को तरसते नन्हे हाथो को देखा है।

सजाया गया था चमचमाते झालर से मस्जिद और चमकते चादर से दरगाह को,
बाहर एक फ़कीर को भूख और ठंड से तड़प के मरते देखा है ।।

लदी हुई है रेशमी चादरों से वो हरी मजार ,
पर बहार एक बूढ़ी अम्मा को ठंड से ठिठुरते देखा है। 

वो दे आया एक लाख गुरद्वारे में हाल के लिए ,
घर में उसको 500 रूपये के लिए काम वाली बाई बदलते देखा है।

सुना है चढ़ा था सलीब पे कोई दुनिया का दर्द मिटाने को,
आज चर्च में बेटे की मार से बिलखते माँ बाप को देखा है। 

जलाती रही जो अखन्ड ज्योति देसी घी की दिन रात पुजारन ,
आज उसे प्रसव में कुपोषण के कारण मौत से लड़ते देखा है ।

जिसने न दी माँ बाप को भर पेट रोटी कभी जीते जी , आज लगाते उसको भंडारे मरने के बाद देखा है ।

दे के समाज की दुहाई ब्याह दिया था जिस बेटी को जबरन बाप ने, आज पीटते उसी शौहर के हाथो सरे राह देखा है ।

मारा गया वो पंडित बेमौत सड़क दुर्घटना में यारो ,
जिसे खुदको काल सर्प, तारे और हाथ की लकीरो का माहिर लिखते देखा है। 

जिस घर की एकता की देता था जमाना कभी मिसाल दोस्तों ,
आज उसी आँगन में खिंचती दीवार को देखा है।

मंगलवार, 29 सितंबर 2015

Rishton mein Duriya to aati rehti hai,

Rishton mein Duriya to aati rehti hai,
Dosti sada do Dilon ko milati rehti hai,
Wo Dosti hi kya Jisme Narazgi na ho,
Par Sachi Dosti hamesha Dosto ko Mana leti hai.

जब लगा था "तीर" तब इतना "दर्द" न हुआ ग़ालिब...

जब लगा था "तीर" तब इतना "दर्द" न हुआ ग़ालिब...
"ज़ख्म" का एहसास तब हुआ जब "कमान" देखी
अपनों के हाथ में...

Har nazar ko ek nazar ki talash hai

Har nazar ko ek nazar ki talash hai,
Har chehre mein kuchh to ehsah hai,
Aapse dosti hum yun hi nahi kar baithe,
Kya karen hamari pasand hi kuchh KHAAS hai.

duniya se mile gam to bahut hai

duniya se mile gam to bahut hai,
inn mile gamo se aankhe num to bahut hai,
kab ke mar jaate inn ghamo ke sehkar,
par dosto ki duaaon mein asar bahut hai.

अंदाज़ कुछ अलग हैं मेरे सोचने का,

अंदाज़ कुछ अलग हैं मेरे सोचने का,,
सब को मंजिल का शौक है और मुझे
सही रास्तों का ..
ये दुनिया इसलिए बुरी नही के यहाँ बुरे
लोग ज्यादा है।
बल्कि इसलिए बुरी है कि यहाँ अच्छे
लोग खामोश है..!

आसमां में मत दूंढ अपने सपनो को

क्या खूब कहा है-
"आसमां में मत दूंढ अपने सपनो को,
सपनो के लिए तो ज़मी जरूरी है,

सब कुछ मिल जाए तो जीने का क्या मज़ा,
जीने के लिये एक कमी भी जरूरी है".

Dost hai mera bahaaron jaisa,

Dost hai mera bahaaron jaisa,
Dil hai uska dildaaron jaisa.

Bohat dost nahi rakhte hum magar,
Mera ek hi dost hai hazaaron jaisa.

Khushiyoon ka sansar leke aayenge,
Patjhar men bhi bahaar ley ke aayenge.

Jab bhi pukaaroge pyaar se humein aey DOST,
Maut se saansein udhaar leke aayenge.

Ek din dosti par ek kitab likhenge,

Ek din dosti par ek kitab likhenge,

Dosto ke sath gujri har baat likhenge,

Jab batana ho ke dost kaise hote hain,

Tumhe soch-soch kar har baat likhenge.

Ajnabi the aap hamare liye,

Ajnabi the aap hamare liye,
U dost bankar milna accha laga,
Beshak sagar se gahri hai aapki dosti,
Terna to aata tha par dubna accha laga.

Kuch uljhe hue sawalo se darta h dil,

Kuch uljhe hue sawalo se darta h dil,

Na jane q tanhai me bikharta h dil,

Kisiko pana koi badi baat nahi,

Bas Dosto ko khone se darta h dil.

Dosti ka rista do anjano ko jod deta hai,

Dosti ka rista do anjano ko jod deta hai,
har kadam per zindgi ko nya mod deta hai,
saccha dost sath deta hai tab,
jab apna saya bhi sath chod deta hai..

Maangi maut Zindgi mili,

Maangi maut Zindgi mili,
Andheron me bhi roshni mili,
Poocha khuda se kya hai sabse haseen tohfa mere liye,
khuda se us tohfe me apki dosti mili.

जिन्दगी की दौड़ में, तजुर्बा कच्चा ही रह गया...

जिन्दगी की दौड़ में,
तजुर्बा कच्चा ही रह गया...
हम सीख न पाये 'फरेब'
और दिल बच्चा ही रह गया !
बचपन में जहां चाहा हंस लेते थे,
जहां चाहा रो लेते थे...
पर अब मुस्कान को तमीज़ चाहिए
और आंसुओ को तन्हाई !
हम भी मुस्कराते थे कभी बेपरवाह अन्दाज़ से...
देखा है आज खुद को कुछ पुरानी तस्वीरों में !
चलो मुस्कुराने की वजह ढूंढते हैं...
जिन्दगी तुम हमें ढूंढो...
हम तुम्हे ढूंढते हैं ...!!!

कितने फसाद होते

समंदर सारे शराब होते तो सोचो कितने फसाद होते,
हकीक़त हो जाते ख्वाब सारे तो सोचो कितने फसाद होते

किसी के दिल में क्या छुपा है बस ये खुदा ही जानता है ,
दिल अगर बे नक़ाब होते तो सोचो कितने फसाद होते

थी ख़ामोशी फितरत हमारी तभी तो बरसों निभ गई ,
अगर हमारे मुंह में भी जवाब होते तो सोचो कितने फसाद होते

हम अच्छे थे पर लोगों की नज़र मे सदा रहे बुरे ,
कहीं हम सच में खराब होते तो सोचो कितने फसाद होते ||l

तेरा   कोई  स्थायी  पता ह

ऐ   "सुख"  तू  कहाँ   मिलता   है
क्या  तेरा   कोई  स्थायी  पता है

क्यों   बन   बैठा   है अन्जाना
आखिर   क्या   है   तेरा   ठिकाना।

कहाँ   कहाँ    ढूंढा  तुझको
पर  तू  न  कहीं  मिला  मुझको

ढूंढा  ऊँचे   मकानों  में
बड़ी  बड़ी   दुकानों  में

स्वादिस्ठ   पकवानों  में
चोटी  के  धनवानों  में

वो   भी   तुझको    ढूंढ  रहे   थे
बल्कि   मुझको  ही   पूछ  रहे थे

क्या   आपको   कुछ   पता    है
ये  सुख  आखिर  कहाँ  रहता   है?

मेरे  पास  तो  "दुःख"  का   पता   था
जो   सुबह   शाम अक्सर  मिलता  था

परेशान   होके   रपट    लिखवाई
पर   ये   कोशिश   भी   काम  न  आई

उम्र   अब   ढलान  पे  है
हौसले    थकान  पे    है

हाँ   उसकी  तस्वीर   है   मेरे पास
अब  भी बची   हुई  है    आस

मैं  भी हार    नही    मानूंगा
सुख  के  रहस्य   को जानूंगा

बचपन   में    मिला    करता    था
मेरे    साथ   रहा    करता  था

पर   जबसे   मैं    बड़ा   हो   गया
मेरा  सुख   मुझसे   जुदा   हो  गया।

मैं   फिर   भी   नही   हुआ    हताश
जारी   रखी    उसकी    तलाश

एक  दिन  जब   आवाज  ये    आई
क्या   मुझको   ढूंढ  रहा  है   भाई

मैं  तेरे  अन्दर   छुपा   हुआ    हूँ
तेरे  ही   घर  में  बसा   हुआ  हूँ

मेरा  नही  है   कुछ   भी    "मोल"
सिक्कों   में   मुझको   न तोल

मैं  बच्चों  की  मुस्कानों  में    हूँ
हारमोनियम   की  तानों   में हूँ

पत्नी  के साथ    चाय  पीने में
"परिवार"    के  संग  जीने   में

माँ  बाप   के आशीर्वाद    में
रसोई   घर   के  पकवानो  में

बच्चों  की   सफलता  में   हूँ
माँ   की  निश्छल  ममता  में  हूँ

हर  पल  तेरे  संग    रहता  हूँ
और   अक्सर  तुझसे   कहता  हूँ

मैं   तो   हूँ   बस एक    "अहसास"
बंद  कर   दे   तु मेरी    तलाश

जो   मिला   उसी  में  कर   "संतोष"
आज  को  जी  ले  कल  की न सोच

कल  के   लिए  आज  को  न   खोना

मेरे  लिए   कभी   दुखी   न    होना |
मेरे  लिए   कभी   दुखी   न    होना ||

मंजिल की भी हसरत थी

"आगे सफर था और पीछे हमसफर था....
रूकते तो सफर छूट जाता और चलते तो हम सफर छूट जाता...

मंजिल की भी हसरत थी और उनसे भी मोहब्बत थी..
ए दिल तू ही बता...उस वक्त मैं कहाँ जाता...

मुद्दत का सफर भी था और बरसो का हम सफर भी था
रूकते तो बिछड जाते और चलते तो बिखर जाते....

यूँ समँझ लो....

प्यास लगी थी गजब की...मगर पानी मे जहर था...
पीते तो मर जाते और ना पीते तो भी मर जाते...
बस यही दो मसले, जिंदगीभर ना हल हुए!!!
ना नींद पूरी हुई, ना ख्वाब मुकम्मल हुए!!!

वक़्त ने कहा.....काश थोड़ा और सब्र होता!!!
सब्र ने कहा....काश थोड़ा और वक़्त होता!!!
सुबह सुबह उठना पड़ता है कमाने के लिए साहेब...।। आराम कमाने निकलता हूँ आराम छोड़कर।।
"हुनर" सड़कों पर तमाशा करता है और "किस्मत" महलों में राज करती है!!
"शिकायते तो बहुत है तुझसे ऐ जिन्दगी,
पर चुप इसलिये हूँ कि, जो दिया तूने,
वो भी बहुतो को नसीब नहीं होता"...

आसमां में मत दूंढ

क्या खूब कहा है-
"आसमां में मत दूंढ अपने सपनो को,
सपनो के लिए तो ज़मी जरूरी है,

सब कुछ मिल जाए तो जीने का क्या मज़ा,
जीने के लिये एक कमी भी जरूरी है".

शनिवार, 26 सितंबर 2015

मुस्कुराहट एक कमाल की पहेली है,

मुस्कुराहट एक कमाल की पहेली है,
जितना बताती है, उससे कहीं ज्यादा छुपाती है...

जिम्मेदारियां मजबूर कर देती हैं

जिम्मेदारियां मजबूर कर देती हैं अपना शहर छोड़ने को,
वरना कौन अपनी गली मे
जीना नहीं चाहता.....
हसरतें आज भी खत लिखती हैं मुझे,
पर मैं अब पुराने पते पर नहीं रहता ।।

दोनो हाथ फैला दिये मैने ...

या खुदा
" तुझे देखते ही दोनो हाथ फैला
दिये मैने ...
नही जानता  कि आखिर मै चाहता
क्या हूँ ..."

जिनकी नफ़रत से बुत भी लहूलुहान खड़े हैं।

जिनकी नफ़रत से बुत भी लहूलुहान खड़े हैं।
सुना है आज वो भी कुछ परेशान खड़े हैं॥

कहाँ छुपा के रख दूँ मैं अपने हिस्से की शराफत,
जिधर भी देखता हूँ उधर बेईमान खड़े हैं॥

क्या खूब तरक्की कर रहा है अब देश देखिये,
खेतों में बिल्डर, सड़क पर किसान खड़े हैं ॥

अब खुशी है न कोई ग़म रुलाने वाला

अब खुशी है न कोई ग़म रुलाने वाला
हमने अपना लिया हर रंग ज़माने वाला
हर बे-चेहरा सी उम्मीद है चेहरा चेहरा
जिस तरफ़ देखिए आने को है आने वाला
उसको रुखसत तो किया था मुझे मालूम न था
सारा घर ले गया घर छोड़ के जाने वाला
दूर के चांद को ढूंढ़ो न किसी आँचल में
ये उजाला नहीं आंगन में समाने वाला
इक मुसाफ़िर के सफ़र जैसी है सबकी दुनिया
कोई जल्दी में कोई देर में जाने वाला .

निदा फ़ाज़ली

उम्रकैद की तरह होते हैं कुछ रिश्ते,

उम्रकैद की तरह होते हैं कुछ रिश्ते,

जहाँ जमानत देकर भी रिहाई मुमकिन नहीं...

मैं दिया हूँ...

मैं दिया हूँ...
दुश्मनी तो सिर्फ़ अँधेरे से है मेरी...
हवा तो बेवजह ही मेरे खिलाफ़ है...!

कल तक जिनकी सुबह शाम

कल तक जिनकी सुबह शाम होती थी मेरे नाम से,

आज दरवाजे पे दस्तक दी तो पूछते हैं  आप कौन ?

तुम्हारा सिर्फ हवाओं पे शक गया होगा

तुम्हारा सिर्फ हवाओं पे शक गया होगा

चिराग़ खुद भी तो जल जल के थक गया होगा

जो झुकते हैं ज़िन्दगी में

जो झुकते हैं ज़िन्दगी में वो बुज़दिल नही होते..यह हुनर होता हैं उनका हर रिश्ता निभाने का..!!

फरेबी भी हूँ.

"...फरेबी भी हूँ..., ज़िद्दी भी हूँ..., और पत्थर दिल भी हूँ...., ....मासूमियत खो दी है मैंने...., वफ़ा करते-करते...

लूट लेते हैं अपने ही,

लूट लेते हैं अपने ही,
वरना                 गैरों को क्या पता                    इस दिल की दीवार कमजोर कहाँ से है

जी रहा हूं अभी..

जी रहा हूं अभी..तेरी शर्तों के मुताबिक ज़िन्दगी..
दौर आएगा कभी तो..मेरी फरमाइशों का भी..!!

महफ़िलों ने भी बहुत रुलाया

"जाने कब-कब किस-किस ने कैसे-कैसे तरसाया मुझे, तन्हाईयों की बात न पूछो महफ़िलों ने भी बहुत रुलाया मुझे"