बुधवार, 30 सितंबर 2015

सहर ए नवा का अब के कुछ यूं असर होगा

सहर ए नवा का अब के कुछ यूं असर होगा
रोशनी की तलाश में यह समूचा शहर होगा

इंशा अल्लाह  वो दौर भी यकीनन आयेगा
हर शीशे के हाथ में एक दिन पत्थर होगा

ज़माने को  मालुम है तेरेे इंसाफ का आलम
हर इक इल्जाम किसी बेगुनाह के सर होगा

चरागों को ही हासिल है यह खुदाई खिदमत
कि बस्तियां जलाने से न रोशन कोई घर होगा

मत पूछ कि कहाँ से चला था कहाँ आया हूँ
मिलेगी जहाँ मंजिल  शुरू वहीं से सफर होगा 

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