बुधवार, 30 सितंबर 2015

सहर ए नवा का अब के कुछ यूं असर होगा

सहर ए नवा का अब के कुछ यूं असर होगा
रोशनी की तलाश में यह समूचा शहर होगा

इंशा अल्लाह  वो दौर भी यकीनन आयेगा
हर शीशे के हाथ में एक दिन पत्थर होगा

ज़माने को  मालुम है तेरेे इंसाफ का आलम
हर इक इल्जाम किसी बेगुनाह के सर होगा

चरागों को ही हासिल है यह खुदाई खिदमत
कि बस्तियां जलाने से न रोशन कोई घर होगा

मत पूछ कि कहाँ से चला था कहाँ आया हूँ
मिलेगी जहाँ मंजिल  शुरू वहीं से सफर होगा 

कितने बेबस हैं

हम भी फूलों की तरह कितने बेबस हैं , कभी किस्मत से टूट जाते हैं , कभी लोग तोड़ जाते हैं

तरसते नन्हे हाथो को देखा है?

बड़ी ही गहरी बात लिख दी है
किसी शक्शियत नें ...

बेजुबान पत्थर पे लदे है करोडो के गहने मंदिरो में ,
उसी देहलीज पे एक रूपये को तरसते नन्हे हाथो को देखा है।

सजाया गया था चमचमाते झालर से मस्जिद और चमकते चादर से दरगाह को,
बाहर एक फ़कीर को भूख और ठंड से तड़प के मरते देखा है ।।

लदी हुई है रेशमी चादरों से वो हरी मजार ,
पर बहार एक बूढ़ी अम्मा को ठंड से ठिठुरते देखा है। 

वो दे आया एक लाख गुरद्वारे में हाल के लिए ,
घर में उसको 500 रूपये के लिए काम वाली बाई बदलते देखा है।

सुना है चढ़ा था सलीब पे कोई दुनिया का दर्द मिटाने को,
आज चर्च में बेटे की मार से बिलखते माँ बाप को देखा है। 

जलाती रही जो अखन्ड ज्योति देसी घी की दिन रात पुजारन ,
आज उसे प्रसव में कुपोषण के कारण मौत से लड़ते देखा है ।

जिसने न दी माँ बाप को भर पेट रोटी कभी जीते जी , आज लगाते उसको भंडारे मरने के बाद देखा है ।

दे के समाज की दुहाई ब्याह दिया था जिस बेटी को जबरन बाप ने, आज पीटते उसी शौहर के हाथो सरे राह देखा है ।

मारा गया वो पंडित बेमौत सड़क दुर्घटना में यारो ,
जिसे खुदको काल सर्प, तारे और हाथ की लकीरो का माहिर लिखते देखा है। 

जिस घर की एकता की देता था जमाना कभी मिसाल दोस्तों ,
आज उसी आँगन में खिंचती दीवार को देखा है।

मंगलवार, 29 सितंबर 2015

Rishton mein Duriya to aati rehti hai,

Rishton mein Duriya to aati rehti hai,
Dosti sada do Dilon ko milati rehti hai,
Wo Dosti hi kya Jisme Narazgi na ho,
Par Sachi Dosti hamesha Dosto ko Mana leti hai.

जब लगा था "तीर" तब इतना "दर्द" न हुआ ग़ालिब...

जब लगा था "तीर" तब इतना "दर्द" न हुआ ग़ालिब...
"ज़ख्म" का एहसास तब हुआ जब "कमान" देखी
अपनों के हाथ में...

Har nazar ko ek nazar ki talash hai

Har nazar ko ek nazar ki talash hai,
Har chehre mein kuchh to ehsah hai,
Aapse dosti hum yun hi nahi kar baithe,
Kya karen hamari pasand hi kuchh KHAAS hai.

duniya se mile gam to bahut hai

duniya se mile gam to bahut hai,
inn mile gamo se aankhe num to bahut hai,
kab ke mar jaate inn ghamo ke sehkar,
par dosto ki duaaon mein asar bahut hai.

अंदाज़ कुछ अलग हैं मेरे सोचने का,

अंदाज़ कुछ अलग हैं मेरे सोचने का,,
सब को मंजिल का शौक है और मुझे
सही रास्तों का ..
ये दुनिया इसलिए बुरी नही के यहाँ बुरे
लोग ज्यादा है।
बल्कि इसलिए बुरी है कि यहाँ अच्छे
लोग खामोश है..!

आसमां में मत दूंढ अपने सपनो को

क्या खूब कहा है-
"आसमां में मत दूंढ अपने सपनो को,
सपनो के लिए तो ज़मी जरूरी है,

सब कुछ मिल जाए तो जीने का क्या मज़ा,
जीने के लिये एक कमी भी जरूरी है".

Dost hai mera bahaaron jaisa,

Dost hai mera bahaaron jaisa,
Dil hai uska dildaaron jaisa.

Bohat dost nahi rakhte hum magar,
Mera ek hi dost hai hazaaron jaisa.

Khushiyoon ka sansar leke aayenge,
Patjhar men bhi bahaar ley ke aayenge.

Jab bhi pukaaroge pyaar se humein aey DOST,
Maut se saansein udhaar leke aayenge.

Ek din dosti par ek kitab likhenge,

Ek din dosti par ek kitab likhenge,

Dosto ke sath gujri har baat likhenge,

Jab batana ho ke dost kaise hote hain,

Tumhe soch-soch kar har baat likhenge.

Ajnabi the aap hamare liye,

Ajnabi the aap hamare liye,
U dost bankar milna accha laga,
Beshak sagar se gahri hai aapki dosti,
Terna to aata tha par dubna accha laga.

Kuch uljhe hue sawalo se darta h dil,

Kuch uljhe hue sawalo se darta h dil,

Na jane q tanhai me bikharta h dil,

Kisiko pana koi badi baat nahi,

Bas Dosto ko khone se darta h dil.

Dosti ka rista do anjano ko jod deta hai,

Dosti ka rista do anjano ko jod deta hai,
har kadam per zindgi ko nya mod deta hai,
saccha dost sath deta hai tab,
jab apna saya bhi sath chod deta hai..

Maangi maut Zindgi mili,

Maangi maut Zindgi mili,
Andheron me bhi roshni mili,
Poocha khuda se kya hai sabse haseen tohfa mere liye,
khuda se us tohfe me apki dosti mili.

जिन्दगी की दौड़ में, तजुर्बा कच्चा ही रह गया...

जिन्दगी की दौड़ में,
तजुर्बा कच्चा ही रह गया...
हम सीख न पाये 'फरेब'
और दिल बच्चा ही रह गया !
बचपन में जहां चाहा हंस लेते थे,
जहां चाहा रो लेते थे...
पर अब मुस्कान को तमीज़ चाहिए
और आंसुओ को तन्हाई !
हम भी मुस्कराते थे कभी बेपरवाह अन्दाज़ से...
देखा है आज खुद को कुछ पुरानी तस्वीरों में !
चलो मुस्कुराने की वजह ढूंढते हैं...
जिन्दगी तुम हमें ढूंढो...
हम तुम्हे ढूंढते हैं ...!!!

कितने फसाद होते

समंदर सारे शराब होते तो सोचो कितने फसाद होते,
हकीक़त हो जाते ख्वाब सारे तो सोचो कितने फसाद होते

किसी के दिल में क्या छुपा है बस ये खुदा ही जानता है ,
दिल अगर बे नक़ाब होते तो सोचो कितने फसाद होते

थी ख़ामोशी फितरत हमारी तभी तो बरसों निभ गई ,
अगर हमारे मुंह में भी जवाब होते तो सोचो कितने फसाद होते

हम अच्छे थे पर लोगों की नज़र मे सदा रहे बुरे ,
कहीं हम सच में खराब होते तो सोचो कितने फसाद होते ||l

तेरा   कोई  स्थायी  पता ह

ऐ   "सुख"  तू  कहाँ   मिलता   है
क्या  तेरा   कोई  स्थायी  पता है

क्यों   बन   बैठा   है अन्जाना
आखिर   क्या   है   तेरा   ठिकाना।

कहाँ   कहाँ    ढूंढा  तुझको
पर  तू  न  कहीं  मिला  मुझको

ढूंढा  ऊँचे   मकानों  में
बड़ी  बड़ी   दुकानों  में

स्वादिस्ठ   पकवानों  में
चोटी  के  धनवानों  में

वो   भी   तुझको    ढूंढ  रहे   थे
बल्कि   मुझको  ही   पूछ  रहे थे

क्या   आपको   कुछ   पता    है
ये  सुख  आखिर  कहाँ  रहता   है?

मेरे  पास  तो  "दुःख"  का   पता   था
जो   सुबह   शाम अक्सर  मिलता  था

परेशान   होके   रपट    लिखवाई
पर   ये   कोशिश   भी   काम  न  आई

उम्र   अब   ढलान  पे  है
हौसले    थकान  पे    है

हाँ   उसकी  तस्वीर   है   मेरे पास
अब  भी बची   हुई  है    आस

मैं  भी हार    नही    मानूंगा
सुख  के  रहस्य   को जानूंगा

बचपन   में    मिला    करता    था
मेरे    साथ   रहा    करता  था

पर   जबसे   मैं    बड़ा   हो   गया
मेरा  सुख   मुझसे   जुदा   हो  गया।

मैं   फिर   भी   नही   हुआ    हताश
जारी   रखी    उसकी    तलाश

एक  दिन  जब   आवाज  ये    आई
क्या   मुझको   ढूंढ  रहा  है   भाई

मैं  तेरे  अन्दर   छुपा   हुआ    हूँ
तेरे  ही   घर  में  बसा   हुआ  हूँ

मेरा  नही  है   कुछ   भी    "मोल"
सिक्कों   में   मुझको   न तोल

मैं  बच्चों  की  मुस्कानों  में    हूँ
हारमोनियम   की  तानों   में हूँ

पत्नी  के साथ    चाय  पीने में
"परिवार"    के  संग  जीने   में

माँ  बाप   के आशीर्वाद    में
रसोई   घर   के  पकवानो  में

बच्चों  की   सफलता  में   हूँ
माँ   की  निश्छल  ममता  में  हूँ

हर  पल  तेरे  संग    रहता  हूँ
और   अक्सर  तुझसे   कहता  हूँ

मैं   तो   हूँ   बस एक    "अहसास"
बंद  कर   दे   तु मेरी    तलाश

जो   मिला   उसी  में  कर   "संतोष"
आज  को  जी  ले  कल  की न सोच

कल  के   लिए  आज  को  न   खोना

मेरे  लिए   कभी   दुखी   न    होना |
मेरे  लिए   कभी   दुखी   न    होना ||

मंजिल की भी हसरत थी

"आगे सफर था और पीछे हमसफर था....
रूकते तो सफर छूट जाता और चलते तो हम सफर छूट जाता...

मंजिल की भी हसरत थी और उनसे भी मोहब्बत थी..
ए दिल तू ही बता...उस वक्त मैं कहाँ जाता...

मुद्दत का सफर भी था और बरसो का हम सफर भी था
रूकते तो बिछड जाते और चलते तो बिखर जाते....

यूँ समँझ लो....

प्यास लगी थी गजब की...मगर पानी मे जहर था...
पीते तो मर जाते और ना पीते तो भी मर जाते...
बस यही दो मसले, जिंदगीभर ना हल हुए!!!
ना नींद पूरी हुई, ना ख्वाब मुकम्मल हुए!!!

वक़्त ने कहा.....काश थोड़ा और सब्र होता!!!
सब्र ने कहा....काश थोड़ा और वक़्त होता!!!
सुबह सुबह उठना पड़ता है कमाने के लिए साहेब...।। आराम कमाने निकलता हूँ आराम छोड़कर।।
"हुनर" सड़कों पर तमाशा करता है और "किस्मत" महलों में राज करती है!!
"शिकायते तो बहुत है तुझसे ऐ जिन्दगी,
पर चुप इसलिये हूँ कि, जो दिया तूने,
वो भी बहुतो को नसीब नहीं होता"...

आसमां में मत दूंढ

क्या खूब कहा है-
"आसमां में मत दूंढ अपने सपनो को,
सपनो के लिए तो ज़मी जरूरी है,

सब कुछ मिल जाए तो जीने का क्या मज़ा,
जीने के लिये एक कमी भी जरूरी है".

शनिवार, 26 सितंबर 2015

मुस्कुराहट एक कमाल की पहेली है,

मुस्कुराहट एक कमाल की पहेली है,
जितना बताती है, उससे कहीं ज्यादा छुपाती है...

जिम्मेदारियां मजबूर कर देती हैं

जिम्मेदारियां मजबूर कर देती हैं अपना शहर छोड़ने को,
वरना कौन अपनी गली मे
जीना नहीं चाहता.....
हसरतें आज भी खत लिखती हैं मुझे,
पर मैं अब पुराने पते पर नहीं रहता ।।

दोनो हाथ फैला दिये मैने ...

या खुदा
" तुझे देखते ही दोनो हाथ फैला
दिये मैने ...
नही जानता  कि आखिर मै चाहता
क्या हूँ ..."

जिनकी नफ़रत से बुत भी लहूलुहान खड़े हैं।

जिनकी नफ़रत से बुत भी लहूलुहान खड़े हैं।
सुना है आज वो भी कुछ परेशान खड़े हैं॥

कहाँ छुपा के रख दूँ मैं अपने हिस्से की शराफत,
जिधर भी देखता हूँ उधर बेईमान खड़े हैं॥

क्या खूब तरक्की कर रहा है अब देश देखिये,
खेतों में बिल्डर, सड़क पर किसान खड़े हैं ॥

अब खुशी है न कोई ग़म रुलाने वाला

अब खुशी है न कोई ग़म रुलाने वाला
हमने अपना लिया हर रंग ज़माने वाला
हर बे-चेहरा सी उम्मीद है चेहरा चेहरा
जिस तरफ़ देखिए आने को है आने वाला
उसको रुखसत तो किया था मुझे मालूम न था
सारा घर ले गया घर छोड़ के जाने वाला
दूर के चांद को ढूंढ़ो न किसी आँचल में
ये उजाला नहीं आंगन में समाने वाला
इक मुसाफ़िर के सफ़र जैसी है सबकी दुनिया
कोई जल्दी में कोई देर में जाने वाला .

निदा फ़ाज़ली

उम्रकैद की तरह होते हैं कुछ रिश्ते,

उम्रकैद की तरह होते हैं कुछ रिश्ते,

जहाँ जमानत देकर भी रिहाई मुमकिन नहीं...

मैं दिया हूँ...

मैं दिया हूँ...
दुश्मनी तो सिर्फ़ अँधेरे से है मेरी...
हवा तो बेवजह ही मेरे खिलाफ़ है...!

कल तक जिनकी सुबह शाम

कल तक जिनकी सुबह शाम होती थी मेरे नाम से,

आज दरवाजे पे दस्तक दी तो पूछते हैं  आप कौन ?

तुम्हारा सिर्फ हवाओं पे शक गया होगा

तुम्हारा सिर्फ हवाओं पे शक गया होगा

चिराग़ खुद भी तो जल जल के थक गया होगा

जो झुकते हैं ज़िन्दगी में

जो झुकते हैं ज़िन्दगी में वो बुज़दिल नही होते..यह हुनर होता हैं उनका हर रिश्ता निभाने का..!!

फरेबी भी हूँ.

"...फरेबी भी हूँ..., ज़िद्दी भी हूँ..., और पत्थर दिल भी हूँ...., ....मासूमियत खो दी है मैंने...., वफ़ा करते-करते...

लूट लेते हैं अपने ही,

लूट लेते हैं अपने ही,
वरना                 गैरों को क्या पता                    इस दिल की दीवार कमजोर कहाँ से है

जी रहा हूं अभी..

जी रहा हूं अभी..तेरी शर्तों के मुताबिक ज़िन्दगी..
दौर आएगा कभी तो..मेरी फरमाइशों का भी..!!

महफ़िलों ने भी बहुत रुलाया

"जाने कब-कब किस-किस ने कैसे-कैसे तरसाया मुझे, तन्हाईयों की बात न पूछो महफ़िलों ने भी बहुत रुलाया मुझे"

उलझनों और कश्मकश में

उलझनों और कश्मकश में,
उम्मीद की ढाल लिए बैठा हूँ।

ए जिंदगी! तेरी हर चाल के लिए,
मैं दो चाल लिए बैठा हूँ |

लुत्फ़ उठा रहा हूँ मैं भी आँख - मिचोली का।
मिलेगी कामयाबी, हौसला कमाल का लिए बैठा हूँ l

चल मान लिया, दो-चार दिन नहीं मेरे मुताबिक़।
गिरेबान में अपने, ये सुनहरा साल लिए बैठा हूँ l

ये गहराइयां, ये लहरें, ये तूफां, तुम्हे मुबारक।
मुझे क्या फ़िक्र, मैं कश्तीया और दोस्त बेमिसाल लिए बैठा हूँ।

शुक्रवार, 25 सितंबर 2015

ज़रा अदब से ही चलना

"नीचे गिरे सूखे पत्तों पर ज़रा अदब से ही चलना

कभी कड़ी धूप में तुमने ईन्ही से पनाह माँगी थी।"

(These lines encourage to respect parents in their old age )

छोटा सा गाँव मेरा

छोटा सा गाँव मेरा
पुरा बिग् बाजार था,,

एक नाई, एक मोची,
एक काला लुहार था....
छोटे छोटे घर थे,
हर आदमी बङा दिलदार
था,
छोटा सा गाँव मेरा
पुरा बिग् बाजार था..।।

कही भी रोटी खा लेतै,
हर घर मे भोजऩ तैयार
था,
बाड़ी की सब्जी मजे से खाते थे,,
जिसके आगे शाही पनीर बेकार था..
छोटा सा गाँव मेरा
पुरा बिग् बाजार था।।।

दो मिऩट की मैगी ना, झटपट दलिया तैयार था,,
नीम की निम्बोली और शहतुत सदाबहार था...
अपना घड़ा कस कै बजा लेते,
समारू पुरा संगीतकार था,,
छोटा सा गाँव मेरा
पुरा बिग् बाजार था।।।

मुल्तानी माटी से तालाब में नहा लेते, साबुन और स्विमिंग पूल बेकार था,,
और फिर कबड्डी खेल लेते,
हमे कहाँ क्रिकेट का खुमार था,,
छोटा सा गाँव मेरा
पुरा बिग् बाजार था।।।

दादी की कहानी सुन लेते,
कहाँ टेलीविज़न और अखबार था,,,
भाई - भाई को देख के खुश था,
सब मे बहुत प्यार था,,,
छोटा सा गाँव मेरा
पुरा बिग् बाजार था।।।

वो प्यार, वो संस्कृति
मैं अब कहाँ से लाऊं,
ये सोच सोच कर
मैं बहुत दुख पाऊं।
जो वो समय फिर आ जा्य, तो बहुत मजा आ जाय,,,
मैं अपनी असली जिन्दगी जी पाऊं,
और मैं इस धरती को सौ-सौ शीश झुकाऊं।

बुधवार, 23 सितंबर 2015

लो उषा का आगमन हो रहा ह

नयन का नयन से, नमन हो रहा है
लो उषा का आगमन हो रहा है

परत दर परत, चांदनी कट रही है
तभी तो निशा का, गमन हो रहा है

क्षितिज पर अभी भी हैं, अलसाये सपने
पलक खोल कर भी, शयन हो रहा है

झरोखों से प्राची की पहली किरण का
लहर से प्रथम आचमन हो रहा है

हैं नहला रहीं, हर कली को तुषारें
लगन पूर्व कितना जतन हो रहा है

वहीं शाख पर पँक्षियों का है कलरव
प्रभाती-सा लेकिन, सहन हो रहा है

बढ़ी जा रही जिस तरह से अरुणिमा
है लगता कहीं पर हवन हो रहा है

मधुर मुक्त आभा, सुगंधित पवन है
नये दिन का कैसा सृजन हो रहा है।   

 

मंगलवार, 22 सितंबर 2015

जो मुस्कुरा रहा है,

जो मुस्कुरा रहा है, उसे दर्द ने पाला होगा...,जो चल रहा है, उसके पाँव में छाला होगा...,बिना संघर्ष के इन्सान चमक नही सकता, यारों...,जो जलेगा उसी दिये में तो, उजाला होगा.।".

खवाहिश  नही  मुझे  मशहुर  होने  की।

खवाहिश  नही  मुझे  मशहुर  होने  की।
आप  मुझे  पहचानते  हो  बस  इतना  ही  काफी  है।
अच्छे  ने  अच्छा  और  बुरे  ने  बुरा  जाना  मुझे।
क्यों  की  जीसकी  जीतनी  जरुरत  थी  उसने  उतना  ही  पहचाना  मुझे।
ज़िन्दगी  का  फ़लसफ़ा  भी   कितना  अजीब  है,
शामें  कटती  नहीं,  और  साल  गुज़रते  चले  जा  रहे  हैं....!!
एक  अजीब  सी  दौड़  है  ये  ज़िन्दगी,
जीत  जाओ  तो  कई  अपने  पीछे  छूट  जाते  हैं,
और  हार  जाओ  तो  अपने  ही  पीछे  छोड़  जाते  हैं।
बैठ जाता हूं मिट्टी पे अक्सर...
क्योंकि मुझे अपनी औकात अच्छी लगती है..

मैंने समंदर से सीखा है जीने का सलीक़ा,
चुपचाप से बहना और अपनी मौज में रहना ।।

ऐसा नहीं है कि मुझमें कोई ऐब नहीं है पर सच कहता हूँ मुझमे कोई फरेब नहीं है

जल जाते हैं मेरे अंदाज़ से मेरे दुश्मन क्यूंकि एक मुद्दत से मैंने
न मोहब्बत बदली और न दोस्त बदले .!!.
एक घड़ी ख़रीदकर हाथ मे क्या बाँध ली..
वक़्त पीछे ही पड़ गया मेरे..!!

सोचा था घर बना कर बैठुंगा सुकून से..
पर घर की ज़रूरतों ने मुसाफ़िर बना डाला !!!

सुकून की बात मत कर ऐ ग़ालिब....
बचपन वाला 'इतवार' अब नहीं आता |

जीवन की भाग-दौड़ में -
क्यूँ वक़्त के साथ रंगत खो जाती है ?
हँसती-खेलती ज़िन्दगी भी आम हो जाती है..

एक सवेरा था जब हँस कर उठते थे हम
और
आज कई बार
बिना मुस्कुराये ही शाम हो जाती है..

कितने दूर निकल गए,
रिश्तो को निभाते निभाते..
खुद को खो दिया हमने,
अपनों को पाते पाते..

लोग कहते है हम मुस्कुराते बहोत है,
और हम थक गए दर्द छुपाते छुपाते..

"खुश हूँ और सबको खुश रखता हूँ,
लापरवाह हूँ फिर भी सबकी परवाह
करता हूँ..

मालूम है कोई मोल नहीं मेरा,
फिर भी,
कुछ अनमोल लोगो से
रिश्ता रखता हूँ...!

रविवार, 20 सितंबर 2015

उसकी धाक ...., एक दो पर नहीं

उसकी धाक ...., एक दो पर नहीं , सैकड़ो पे थी . और गिनती भी उसकी शहर के बड़े बड़ो में थी. दफ़न .... केवल छह फिट के गड्डे में कर दिया उसको , जबकि ...... जमीन उसके नाम तो कई एकड़ो में थी ..

राख में भी नहीं जीने देत

राख में भी नहीं जीने देते
चैन से लोग.......

दो दिन बाद आकर
वहाँ से भी आधा ले जाते है.....

शनिवार, 19 सितंबर 2015

प्यास लगी थी गजब की...मगर पानी मे जहर था...

प्यास लगी थी गजब की...मगर पानी मे जहर था...
पीते तो मर जाते और ना पीते तो भी मर जाते...
बस यही दो मसले, जिंदगीभर ना हल हुए!!!
ना नींद पूरी हुई, ना ख्वाब मुकम्मल हुए!!!
वक़्त ने कहा.....काश थोड़ा और सब्र होता!!!
सब्र ने कहा....काश थोड़ा और वक़्त होता!!!
सुबह सुबह उठना पड़ता है कमाने के लिए साहेब...।। आराम कमाने निकलता हूँ आराम छोड़कर।।
"हुनर" सड़कों पर तमाशा करता है और "किस्मत" महलों में राज करती है!!
"शिकायते तो बहुत है तुझसे ऐ जिन्दगी,
पर चुप इसलिये हु कि, जो दिया तूने,
वो भी बहुतो को नसीब नहीं होता"...

गुरुवार, 17 सितंबर 2015

सुनने कि आदत डालो,

सुनने कि आदत डालो,
    ताने मारने वालों की
                 कमी नही है.......
मुस्कराने की आदत डालो,
        रुलाने वालों की
                 कमी नही है.......
ऊपर उठने की आदत डालो,
         टाँग खिचनें वालो की
                 कमी नही है.......
प्रोत्साहित करने की आदत
डालो,
    हतोत्साहित करने वालो की
                  कमी नही है......
गलत का विरोध करने की आदत डालो,
सत्य का साथ देने वालो की भी
      
    कमी नही है

वर्षा वर्णन

घरर घरर घनघोर गर्जे

वर्षा वर्णन
छंद रेणंकी

घनघोर घमंड अघोर चढ्यो धन
वादळ दळ अनगळ सजळ चले
तो अवळ सवळ वायु दळ वमळे
भडक् भडक् नभ अनळ जले
तव चमक् चक् बीज चमकत् दमकत्
धमक् धमक् तल धरन ध्रूजे
तो रुमझुम रूमझुम बरसत् बरखा
घरर् घरर् घन घोर गर्जे

तव डमक् डमक् दादुर रव डमकत्
गहेकत् मोर मराग गिरा
तो पियु पियु शब्द पुकारत् चातक्
कीयु कीयु कोकील कुजन हीरा
तव डणक् डणक् मृगराजहीं डणकत्
छणकत् सिंहण काम छज्जे
तो रुमझुम रूमझुम बरसत् बरखा
घरर् घरर् घन घोर गर्जे

तव तृहक तृहक जलभर तरू तहकत्
म्हेकत कुसुमत् सुरभ मृदु
तो गणणण करत गुंजार मधुकर
मृदुल सुमन रज पिबत मधु
तो छलक् छलक् सरवर जल छलकत
सळकत् सरिता सलील सृजे
तो रुमझुम रूमझुम बरसत् बरखा
घरर् घरर् घन घोर गर्जे

तव गडड् गडड् रतनाकर गडडत्
हडडत् मोजां अडड् अड्ये
तो कडड् कडड् नभ होत कडाका
धणणण गिरिवर शिखर धडे
तव धडक् धडक् उर कोमल धडकत
थडकत् भामन कंथ भूजे
तो रूमझुम रूमझुम बरसत् बरखा
घरर् घरर् घन घोर गर्जे

तव रमक् झमक् पद नेपुर रणकत्
ठणकत् झांझर ठीक ठणके
तो खणण खणण कर कंकण खणकत
धमकत रणजण घूघर घणे
धनं बरन बसन मरकत् मन् भूषन्
नुतन सुनत शीनगार सजे
तो रुमझुम रूमझुम बरसत बरखा
घरर् घरर् घन गोर गर्जे

धरी केश सुवेश सुमनभर वेणी
मृगनेनी तन सकल सजे
भ्रुभृंग बिलास डगे मुनीयन मन
नयन विलोलन कुटील छजे
नवहसत् रमत खेलत् पियु पूजत्
नीरखत् रतिपती गरव गंजे
तो रुमझुम रूमझुम बरसत बरखा
घरर् घरर् घन घोर गर्जे

मंगलवार, 15 सितंबर 2015

प्यार के रिश्ते की हो गई है शुरूआत

प्यार के रिश्ते की हो गई है शुरूआत, दिल की दिल से हो गई है पहली मुलाकात, आँखों से झलके है दिल के जजबात, प्यार बढेगा हर पल, चाहे जैसे भी हों हालात..

फूल कमल का भी है,

फूल कमल का भी है, फूल चमेली का भी है, मगर प्यार का पैगाम है फूल गुलाब का. वैसे तो लाखों चेहरे देखे हैं, मगर हमारी तो आँखों में बसा है चेहरा सनम आपका..

लोग आपको गुलाब कहते ह

लोग आपको गुलाब कहते है
      और जाने शबाब कहते है
      आप जैसे हसीन चेहरे को हम
         खुदा की किताब कहते हैं ..

मेरे चेहरे की हंसी हो तुम

मेरे चेहरे की हंसी हो तुम, मेरे दिल की हर ख़ुशी हो तुम, मेरे होठों की मुस्कान तुम ही तो हो, धड़कता है मेरा ये दिल जिसके लिए, वो मेरी जान तुम ही तो हो..

सोच रहा था कुछ दिनो से

सोच रहा था कुछ दिनो से मैं तेरे बारे मैं ये के तुझे अगर खुदा कहु तो वो खुदा बुरा मान जाएगा.. फिर लगा के तू रूठी तो मनाने मैं जिंदगी निकल जाएगी, वो तो फिर खुदा है 2 पल मे ही मान जाएगा..

हमने दिल के साथ एक टॉस किया

हमने दिल के साथ एक टॉस किया, हार गये तब दिल ने लिमिट क्रॉस किया, जब दिल ने दिल से आपको याद किया, हमने मोबाइल उठाया और आपको SMS किया..

जब तन्हाई से दिल घबराएगा

जब तन्हाई से दिल घबराएगा, जब तुम्हे अकेलापन सतायेगा, जब कोई ख्वाब ही नहीं आयेगा, जब फूल किताब में ही रह जायेगा तब मेरी पागल मोहब्बत तुम्हे याद आएगी..

पल पल जीते थे जिस पल के लिए,

पल पल जीते थे जिस पल के लिए, आज वो पल भी मिला तो एक पल के लिए, क्यों ना जिए इस पल को हर पल के लिए, हम तुम्हारे लिए तुम हमारे लिए..

तुम बिल्कुल मेरे जैसे हो..

क्या यही प्यार है – जिस दिन से तुमको देखा है, मैं अक्सर सोचा करता हूँ. तुम कैसे हो , तुम कैसे हो. तुम मेरे दिल में रहते हो, तुम बिल्कुल मेरे जैसे हो..

शायद मोहब्बत हमको भी हो गई.

खिड़की से झांकता हूँ मै सबसे नज़र बचा कर बेचैन हो रहा हूँ क्यों घर की छत पे आ कर क्या ढूँढता हूँ जाने क्या चीज खो गई है इन्सान हूँ शायद मोहब्बत हमको भी हो गई.

मेरी हर खुशी तेरे नाम होगी

कहीं अंधेरा तो कहीं शाम होगी, मेरी हर खुशी तेरे नाम होगी, कभी माँग कर तो देख हमसे ऐ दोस्त, होंठों पर हँसी और हथेली पर जान होगी..

रूठों को मनाना आता है मुझे

रूठों को मनाना आता है मुझे

हर बात को छुपाना आता है तुमको , 

रूठों को मनाना आता है मुझे, 

रूठे हो तुम ना जाने किस बात पर मुझसे, 

तो फिर वो बात क्यों नहीं बताते हो तुम मुझसे ?.


शानदार शायरी ,गम की शायरी, तड़प , जुदाई , हुस्न की शायरी