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बुधवार, 18 मई 2016
धूल की फ़ितरत
कल तक उड़ती थी जो मुँह तक, आज वो पैरों से लिपट गई,,
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चंद बूँदे क्या बरसीं बरसात की, धूल की फ़ितरत ही बदल गई...
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