मास्टर- बेटा कोई प्यार वाली
शायरी सुनाओ
छात्र- मोटा मरता मोटी पे,
भूखा मरता रोटीपे,
मास्टरजी की हैं दो बेटी और
मैं मरता हूं छोटी पे!!!
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मास्टर- बेटा कोई प्यार वाली
शायरी सुनाओ
छात्र- मोटा मरता मोटी पे,
भूखा मरता रोटीपे,
मास्टरजी की हैं दो बेटी और
मैं मरता हूं छोटी पे!!!
बहुत ही प्यारी पंक्तियाँ:--
स्वर्ग में सब कुछ है लेकिन मौत नहीं है,
गीता में सब कुछ है लेकिन झूठ नहीं है,
दुनिया में सब कुछ है लेकिन किसी को सुकून नहीं है,
और
आज के इंसान में सब कुछ है लेकिन सब्र नहीं
किसी ने क्या खूब कहा है:--*--
ना खुशी खरीद पाता हू ना ही गम बेच पाता हू फिर भी मै ना जाने क्यु हर रोज कमाने जाता हूँ।
क्या हसीन इत्तेफाक़ था तेरी गली में आने का....!!
किसी काम से आये थे, !! किसी काम के ना रहे....!!
मालूम नही किसने लिखा है, पर क्या खूब लिखा है..
नफरतों का असर देखो,
जानवरों का बटंवारा हो गया,
गाय हिन्दू हो गयी ;
और बकरा मुसलमान हो गया.
मंदिरो मे हिंदू देखे,
मस्जिदो में मुसलमान,
शाम को जब मयखाने गया ;
तब जाकर दिखे इन्सान.
ये पेड़ ये पत्ते ये शाखें भी परेशान हो जाएं
अगर परिंदे भी हिन्दू और मुस्लमान हो जाएं
सूखे मेवे भी ये देख कर हैरान हो गए
न जाने कब नारियल हिन्दू और
खजूर मुसलमान हो गए..
न मस्जिद को जानते हैं , न शिवालों को जानते हैं
जो भूखे पेट होते हैं, वो सिर्फ निवालों को जानते हैं.
अंदाज ज़माने को खलता है.
की मेरा चिराग हवा के खिलाफ क्यों जलता है......
मैं अमन पसंद हूँ , मेरे शहर में दंगा रहने दो...
लाल और हरे में मत बांटो, मेरी छत पर तिरंगा रहने दो....
जिस तरह से धर्म मजहब के नाम पे हम रंगों को भी बांटते जा रहे है
कि हरा मुस्लिम का है
और लाल हिन्दू का रंग है
तो वो दिन दूर नही
जब सारी की सारी हरी सब्ज़ियाँ मुस्लिमों की हों जाएँगी
और
हिंदुओं के हिस्से बस टमाटर,गाजर और चुकुन्दर ही आएंगे!
अब ये समझ नहीं आ रहा कि ये तरबूज किसके हिस्से में आएगा ?
ये तो बेचारा ऊपर से मुस्लमान और अंदर से हिंदू ही रह जायेगा...
मेरी ना सही तुम्हारी ही सही
तमन्ना पूरी होनी चाहिये ।
“बड़ी मुश्किल से राजी हुए है वो साथ चलने को...,
खुदा करे कि मुझे सारी जिंदगी मंजिल न मिले..."
कुछ बातें ना छेड़ी जाएँ तो ही अच्छा है.....ये सिर्फ़ होकर गुज़र जाने के लिए होती हैं......!!!
अब सोचते हैं लाएँगे तुझ सा कहाँ से हम; उठने को उठ तो आए तेरे आस्ताँ से हम।
अभी मशरूफ हूँ काफी कभी फुर्सत में सोचूंगा; कि तुझको याद रखने में मैं क्या - क्या भूल जाता हूँ।
मत पूछो कि मै अल्फाज कहाँ से लाता हूँ, ये उसकी यादों का खजाना है, बस लुटाये जा रहा हूँ।
जब भी तेरी यादों को आसपास पाता हूँ; खुद को हद दर्ज़े तक उदास पाता हूँ; तुझे तो मिल गई खुशियाँ ज़माने भर की; मै अब भी दिल में वही प्यास पाता हूँ।
चुप चाप से रहते हो आज कल क्या बात है
कोई बात दिल पर लगी या दिल ही किसी से लगा बैठे
मेरी एक बात मानो तो तुम रोज मेरा हाल मत पूछा करो...
हर बार मुझसे झूठ नही बोला जाता...!!!
यकीन करो आज इस कदर याद आ रहे हो तुम; जिस कदर तुम ने भुला रखा है मुझे