शनिवार, 26 सितंबर 2015

उलझनों और कश्मकश में

उलझनों और कश्मकश में,
उम्मीद की ढाल लिए बैठा हूँ।

ए जिंदगी! तेरी हर चाल के लिए,
मैं दो चाल लिए बैठा हूँ |

लुत्फ़ उठा रहा हूँ मैं भी आँख - मिचोली का।
मिलेगी कामयाबी, हौसला कमाल का लिए बैठा हूँ l

चल मान लिया, दो-चार दिन नहीं मेरे मुताबिक़।
गिरेबान में अपने, ये सुनहरा साल लिए बैठा हूँ l

ये गहराइयां, ये लहरें, ये तूफां, तुम्हे मुबारक।
मुझे क्या फ़िक्र, मैं कश्तीया और दोस्त बेमिसाल लिए बैठा हूँ।

शुक्रवार, 25 सितंबर 2015

ज़रा अदब से ही चलना

"नीचे गिरे सूखे पत्तों पर ज़रा अदब से ही चलना

कभी कड़ी धूप में तुमने ईन्ही से पनाह माँगी थी।"

(These lines encourage to respect parents in their old age )

छोटा सा गाँव मेरा

छोटा सा गाँव मेरा
पुरा बिग् बाजार था,,

एक नाई, एक मोची,
एक काला लुहार था....
छोटे छोटे घर थे,
हर आदमी बङा दिलदार
था,
छोटा सा गाँव मेरा
पुरा बिग् बाजार था..।।

कही भी रोटी खा लेतै,
हर घर मे भोजऩ तैयार
था,
बाड़ी की सब्जी मजे से खाते थे,,
जिसके आगे शाही पनीर बेकार था..
छोटा सा गाँव मेरा
पुरा बिग् बाजार था।।।

दो मिऩट की मैगी ना, झटपट दलिया तैयार था,,
नीम की निम्बोली और शहतुत सदाबहार था...
अपना घड़ा कस कै बजा लेते,
समारू पुरा संगीतकार था,,
छोटा सा गाँव मेरा
पुरा बिग् बाजार था।।।

मुल्तानी माटी से तालाब में नहा लेते, साबुन और स्विमिंग पूल बेकार था,,
और फिर कबड्डी खेल लेते,
हमे कहाँ क्रिकेट का खुमार था,,
छोटा सा गाँव मेरा
पुरा बिग् बाजार था।।।

दादी की कहानी सुन लेते,
कहाँ टेलीविज़न और अखबार था,,,
भाई - भाई को देख के खुश था,
सब मे बहुत प्यार था,,,
छोटा सा गाँव मेरा
पुरा बिग् बाजार था।।।

वो प्यार, वो संस्कृति
मैं अब कहाँ से लाऊं,
ये सोच सोच कर
मैं बहुत दुख पाऊं।
जो वो समय फिर आ जा्य, तो बहुत मजा आ जाय,,,
मैं अपनी असली जिन्दगी जी पाऊं,
और मैं इस धरती को सौ-सौ शीश झुकाऊं।

बुधवार, 23 सितंबर 2015

लो उषा का आगमन हो रहा ह

नयन का नयन से, नमन हो रहा है
लो उषा का आगमन हो रहा है

परत दर परत, चांदनी कट रही है
तभी तो निशा का, गमन हो रहा है

क्षितिज पर अभी भी हैं, अलसाये सपने
पलक खोल कर भी, शयन हो रहा है

झरोखों से प्राची की पहली किरण का
लहर से प्रथम आचमन हो रहा है

हैं नहला रहीं, हर कली को तुषारें
लगन पूर्व कितना जतन हो रहा है

वहीं शाख पर पँक्षियों का है कलरव
प्रभाती-सा लेकिन, सहन हो रहा है

बढ़ी जा रही जिस तरह से अरुणिमा
है लगता कहीं पर हवन हो रहा है

मधुर मुक्त आभा, सुगंधित पवन है
नये दिन का कैसा सृजन हो रहा है।   

 

मंगलवार, 22 सितंबर 2015

जो मुस्कुरा रहा है,

जो मुस्कुरा रहा है, उसे दर्द ने पाला होगा...,जो चल रहा है, उसके पाँव में छाला होगा...,बिना संघर्ष के इन्सान चमक नही सकता, यारों...,जो जलेगा उसी दिये में तो, उजाला होगा.।".

खवाहिश  नही  मुझे  मशहुर  होने  की।

खवाहिश  नही  मुझे  मशहुर  होने  की।
आप  मुझे  पहचानते  हो  बस  इतना  ही  काफी  है।
अच्छे  ने  अच्छा  और  बुरे  ने  बुरा  जाना  मुझे।
क्यों  की  जीसकी  जीतनी  जरुरत  थी  उसने  उतना  ही  पहचाना  मुझे।
ज़िन्दगी  का  फ़लसफ़ा  भी   कितना  अजीब  है,
शामें  कटती  नहीं,  और  साल  गुज़रते  चले  जा  रहे  हैं....!!
एक  अजीब  सी  दौड़  है  ये  ज़िन्दगी,
जीत  जाओ  तो  कई  अपने  पीछे  छूट  जाते  हैं,
और  हार  जाओ  तो  अपने  ही  पीछे  छोड़  जाते  हैं।
बैठ जाता हूं मिट्टी पे अक्सर...
क्योंकि मुझे अपनी औकात अच्छी लगती है..

मैंने समंदर से सीखा है जीने का सलीक़ा,
चुपचाप से बहना और अपनी मौज में रहना ।।

ऐसा नहीं है कि मुझमें कोई ऐब नहीं है पर सच कहता हूँ मुझमे कोई फरेब नहीं है

जल जाते हैं मेरे अंदाज़ से मेरे दुश्मन क्यूंकि एक मुद्दत से मैंने
न मोहब्बत बदली और न दोस्त बदले .!!.
एक घड़ी ख़रीदकर हाथ मे क्या बाँध ली..
वक़्त पीछे ही पड़ गया मेरे..!!

सोचा था घर बना कर बैठुंगा सुकून से..
पर घर की ज़रूरतों ने मुसाफ़िर बना डाला !!!

सुकून की बात मत कर ऐ ग़ालिब....
बचपन वाला 'इतवार' अब नहीं आता |

जीवन की भाग-दौड़ में -
क्यूँ वक़्त के साथ रंगत खो जाती है ?
हँसती-खेलती ज़िन्दगी भी आम हो जाती है..

एक सवेरा था जब हँस कर उठते थे हम
और
आज कई बार
बिना मुस्कुराये ही शाम हो जाती है..

कितने दूर निकल गए,
रिश्तो को निभाते निभाते..
खुद को खो दिया हमने,
अपनों को पाते पाते..

लोग कहते है हम मुस्कुराते बहोत है,
और हम थक गए दर्द छुपाते छुपाते..

"खुश हूँ और सबको खुश रखता हूँ,
लापरवाह हूँ फिर भी सबकी परवाह
करता हूँ..

मालूम है कोई मोल नहीं मेरा,
फिर भी,
कुछ अनमोल लोगो से
रिश्ता रखता हूँ...!

रविवार, 20 सितंबर 2015

उसकी धाक ...., एक दो पर नहीं

उसकी धाक ...., एक दो पर नहीं , सैकड़ो पे थी . और गिनती भी उसकी शहर के बड़े बड़ो में थी. दफ़न .... केवल छह फिट के गड्डे में कर दिया उसको , जबकि ...... जमीन उसके नाम तो कई एकड़ो में थी ..