शनिवार, 26 सितंबर 2015

तुम्हारा सिर्फ हवाओं पे शक गया होगा

तुम्हारा सिर्फ हवाओं पे शक गया होगा

चिराग़ खुद भी तो जल जल के थक गया होगा

जो झुकते हैं ज़िन्दगी में

जो झुकते हैं ज़िन्दगी में वो बुज़दिल नही होते..यह हुनर होता हैं उनका हर रिश्ता निभाने का..!!

फरेबी भी हूँ.

"...फरेबी भी हूँ..., ज़िद्दी भी हूँ..., और पत्थर दिल भी हूँ...., ....मासूमियत खो दी है मैंने...., वफ़ा करते-करते...

लूट लेते हैं अपने ही,

लूट लेते हैं अपने ही,
वरना                 गैरों को क्या पता                    इस दिल की दीवार कमजोर कहाँ से है

जी रहा हूं अभी..

जी रहा हूं अभी..तेरी शर्तों के मुताबिक ज़िन्दगी..
दौर आएगा कभी तो..मेरी फरमाइशों का भी..!!

महफ़िलों ने भी बहुत रुलाया

"जाने कब-कब किस-किस ने कैसे-कैसे तरसाया मुझे, तन्हाईयों की बात न पूछो महफ़िलों ने भी बहुत रुलाया मुझे"

उलझनों और कश्मकश में

उलझनों और कश्मकश में,
उम्मीद की ढाल लिए बैठा हूँ।

ए जिंदगी! तेरी हर चाल के लिए,
मैं दो चाल लिए बैठा हूँ |

लुत्फ़ उठा रहा हूँ मैं भी आँख - मिचोली का।
मिलेगी कामयाबी, हौसला कमाल का लिए बैठा हूँ l

चल मान लिया, दो-चार दिन नहीं मेरे मुताबिक़।
गिरेबान में अपने, ये सुनहरा साल लिए बैठा हूँ l

ये गहराइयां, ये लहरें, ये तूफां, तुम्हे मुबारक।
मुझे क्या फ़िक्र, मैं कश्तीया और दोस्त बेमिसाल लिए बैठा हूँ।