मंगलवार, 6 अक्टूबर 2015

लौट आती है हर बार

लौट आती है हर बार इबादत मेरी खाली"!!

ना जाने कौनसी मंजिल पे खुदा रहता है"!

उनके हिस्से का गम

इलाही उनके हिस्से का भी गम मुझको अता कर दे,

कि उन मासूम आंखों में नमी देखी नहीं जाती..

हक

हक जो मिल जाता मुस्कुराने का,

अहसाँ हो -जाता फिर जमाने का

उनके हिस्से का गम

इलाही उनके हिस्से का भी गम मुझको अता कर दे,

कि उन मासूम आंखों में नमी देखी नहीं जाती..

कितना बेजान शहर

कितना बेजान शहर हुआ जाता है अब ये ।

यहाँ उदास चेहरों का हाल कोई नहीं पूछता ।।

मरने वाले का मज़हब पूछते हैं सब ।

यहाँ क़ातिल से सवाल कोई नहीं पूछता ।

शायरो की बस्ती से गुज़रे तो

आज शायरो की बस्ती से गुज़रे तो महसूस हुआ,,

दर्द की महफिले भी लजवाब होती है...

पसंद' है मुझे...

'पसंद' है मुझे.....'उन' लोगों से 'हारना'.....!!
जो मेरे 'हारने' की वजह से.....'पहली' बार 'जीते' हों.....!!!