अजब पहेलियाँ हैं मेरे हाथों की इन लकीरों में;
सफर तो लिखा है मगर मंज़िलों का निशान नहीं।
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गुरुवार, 8 अक्टूबर 2015
अजब पहेलियाँ हैं
हाथ की लकीरों पर
हाथ की लकीरों पर वक़्त की खरोंचे थीं,
लबों पर मुसकुराहट भी ज़ख्म सरीखी थीं
आज 'उम्मीद' का मरहम लगाया है सब पर
ऐ ज़िन्दगी तू हमें अपनाने लगी है!
ऐ ज़िन्दगी तू हमें रास आने लगी है!
वक्त तू कितना भी सता ले
वक्त तू कितना भी सता ले मुझे लेकिन याद रख...
किसी मोड़ पर , तुझे भी बदलने पर मजबूर कर दूंगा
प्लम्बर
प्लम्बर कितना भी
एक्सपर्ट क्यूँ न हो...???
पर...
वो आँखों से बहता...
पानी बंद नहीं कर सकता..
सुखी रोटी
मगन था मै...
सब्ज़ी में नुक़्स निकालने मे...!!
और कोई खुदा से....
सुखी रोटी देने का शुक्र मना रहा था...!!
ज़रा सोचिए।।
मंगलवार, 6 अक्टूबर 2015
मैं भूला नहीं हूँ किसी को....
किसी रोज़ याद न कर पाऊँ तो
खुदग़रज़ ना समझ लेना दोस्तों
दरअसल छोटी सी इस उम्र
मैं परेशानियां बहुत हैं...!!
मैं भूला नहीं हूँ किसी को....
मेरे बहुत कम दोस्त है ज़माने में ....
बस थोड़ी जिंदगी उलझी पड़ी है,
दो वक़्त की रोटी कमाने में........
कोई हालात नहीं समझता
कोई हालात नहीं समझता, कोई जज़्बात नहीं समझता,
ये तो बस अपनी अपनी समझ की बात है...,
कोई कोरा कागज़ भी पढ़ लेता है तो कोई पूरी किताब नहीं समझता!