शुक्रवार, 16 अक्तूबर 2015

इक ख़ूबसूरत शाम

तुम्हारे नाम की इक ख़ूबसूरत शाम हो जाये
हमारा दिल सवेरे का सुनहरा जाम हो जाये
चराग़ों की तरह आँखें जलें जब शाम हो जाये

इत्तेफ़ाक़ से यह हादसा हुआ है चाहत से मेरा वास्ता हुआ है दूर रह कर बड़ा बेताब था दिल पास आ कर भी हाल बुरा हुआ है।

जो लम्हा साथ हैं,,,
उसे जी भर के जी लेना..!
कम्बख्त ये जिंदगी. . .
भरोसे के काबिल नहीं होती.....

कोई शायर तो कोई फकीर

कोई शायर तो कोई फकीर बन जाये; आपको जो देखे वो खुद तस्वीर बन जाये; ना फूलों की ज़रूरत ना कलियों की; जहाँ आप पैर रख दो वहीं कश्मीर बन जाये।

सदियों से जागी आँखों को

सदियों से जागी आँखों को एक बार सुलाने आ जाओ; माना कि तुमको प्यार नहीं, नफ़रत ही जताने आ जाओ; जिस मोड़ पे हमको छोड़ गए हम बैठे अब तक सोच रहे; क्या भूल हुई क्यों जुदा हुए, बस यह समझाने आ जाओ।

इल्ज़ाम

मोहब्बत ने हम पर ये इल्ज़ाम लगाया हैं .. वफ़ा कर के बेबफा का नाम आया हैं …. राहें अलग नहीं थी हमारी फिर भी ….. हम ने अलग अलग मंज़िल को पाया हैं

गुरुवार, 15 अक्तूबर 2015

कामयाबी नही होती है

"सिर्फ आसमान छू लेना ही
कामयाबी
नही होती है !
असली कामयाबी तो वो है
कि आसमान
भी छू लो और पैर भी
जमीन पर हों..!!"
.
"जो हो गया उसे सोचा नही
करते,
जो मिल गया उसे खोया
नही करते,
हासिल उन्हें होती है
सफलता,
जो वक्त और हालात पर
रोया नहीं
करते !!"
.
"घड़ी की सुई अपने नियम
से चलती है ,
इसीलिए सब उसका
विश्वास करते हैं !
आप भी अपने नियम से
चलिये,
लोग आपका भी विश्वास
करेंगे...!!"
.
"रिश्तों की सिलाई" अगर
भावनाओं से
हुई है, "तो टूटना मुश्किल
है" !
और अगर स्वार्थ से हुई है , "तो टिकना
मुश्किल है" !!
.
"दीपक बोलता नहीं उसका
प्रकाश
परिचय देता है !
ठीक उसी प्रकार आप अपने
बारे में कुछ न
बोले ;
अच्छे कर्म करते रहे वही
आपका परिचय
देगे !!"
.
"बहुत खुशकिस्मत होते है
वे लोग जिन्हें
“समय” और
“समझ” एक साथ मिलती
है, क्योंकी
अक्सर “समय”
पर “समझ” नही आती और
जब “समझ”
आती है तो
“समय” हाथ से निकल जाता है…!!!"
सुप्रभात

मंगलवार, 13 अक्तूबर 2015

जीने के लिये भी वक़्त नहीं.... ....

" वक़्त नहीं "
हर ख़ुशी है लोंगों के दामन में,
पर एक हंसी के लिये वक़्त नहीं....
दिन रात दौड़ती दुनिया में,
"ज़िन्दगी" के लिये ही वक़्त नहीं......
सारे रिश्तों को तो हम मार चुके,
अब उन्हें दफ़नाने का भी वक़्त नहीं .....
सारे नाम मोबाइल में हैं ,
पर "दोस्ती" के लिये वक़्त नहीं .....
गैरों की क्या बात. करें ,
जब अपनों के लिये ही वक़्त नहीं......
आखों में है नींद. भरी ,
पर सोने का वक़्त नहीं......
"दिल" है ग़मो से भरा हुआ ,
पर रोने का भी वक़्त नहीं .
पैसों की दौड़ में ऐसे दौड़े, की,,
थकने का भी वक़्त नहीं ....
पराये एहसानों की क्या कद्र करें ,
जब अपने सपनों के लिये ही वक़्त नहीं.......
तू ही बता दे ऐ ज़िन्दगी ,
इस ज़िन्दगी का क्या होगा,
की हर पल मरने वालों को,,
जीने के लिये भी वक़्त नहीं.... ....

मुझें, मंजूर थे वक़्त के सब सितम,

मुझें, मंजूर थे
वक़्त के सब सितम, मगर...
तुमसे मिलकर, बिछड़ जाना..
ये सजा
ज़रा ज्यादा हो गयी..!