शुक्रवार, 16 अक्तूबर 2015

इक ख़ूबसूरत शाम

तुम्हारे नाम की इक ख़ूबसूरत शाम हो जाये
हमारा दिल सवेरे का सुनहरा जाम हो जाये
चराग़ों की तरह आँखें जलें जब शाम हो जाये

इत्तेफ़ाक़ से यह हादसा हुआ है चाहत से मेरा वास्ता हुआ है दूर रह कर बड़ा बेताब था दिल पास आ कर भी हाल बुरा हुआ है।

जो लम्हा साथ हैं,,,
उसे जी भर के जी लेना..!
कम्बख्त ये जिंदगी. . .
भरोसे के काबिल नहीं होती.....

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें